इतिहास
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नली हुसैनपुर गाँव का इतिहास
नली हुसैनपुर गाँव उत्तर प्रदेश के जिला व तहसील हापुड़ का एक मध्यम आबादी का गाँव है। यह गाँव जिला मुख्यालय हापुड़ से 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 24 जो कि दिल्ली को लखनऊ से जोड़ता है पर स्थित है। यह गाँव गंगा-यमुना के बीच की तराई के भूभाग में है। इस गाँव का देश के अन्य स्थानों से रेल व सड़क मार्ग से संपर्क है। राष्ट्रीय राज मार्ग-24 गाँव से महज 5 किलोमीटर दूर है जबकि कुचेसर रोड स्टेशन 5 किलोमीटर और बाबूगढ़ छावनी स्टेशन 7 किलोमीटर दूर है। निर्माणाधीन हवाई अड्डा जेवर महज 40 किलोमीटर दूर है। इस गाँव का पिन कोड 245201 है। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 222 मीटर है। इसके पूर्व में बनखण्डा, रसूलपुर, दक्षिण में नंगला कटक, नंगला उग्रसैन, पश्चिम में भड़ंगपुर, होशियारपुर गढ़ी, उत्तर में डपेन्डा, बछलोता और अलीपुर गाँव की सीमा लगती है। इसका सब गाँवों से पक्की सड़क से संपर्क है। इस गाँव का कुल रकबा लगभग 10000 बीघा है जिसमें से 2000 बीघा लुहाच परिवार के पास है। इस गाँव की कुल आबादी लगभग 8000 लोगों की है जिसमें से लुहाच गौत्र के लोगों की संख्या लगभग 2000 लोगों की है। इस गाँव में 6 मंदिर, 4 जोहड़, 2 चौपाल, 2 आंगनबाड़ी केन्द्र, 1 हस्पताल, 1 पशु हस्पताल, 1 उच्च माध्यमिक स्कूल, 2 प्राथमिक स्कूल हैं। इस गाँव में लुहाच के अलावा दहरान, रेड़ू और गुलईया गौत्र के लोग भी रहते हैं। लुहाच गौत्र के पूर्वज हरियाणा के नाँधा गाँव से जबकि दहरान गौत्र के पूर्वज गाजियाबाद जिले के मोदी नगर के पास खपराना गाँव से आए थे। ऐसा माना जाता है कि दोनों गौत्र के पूर्वज लगभग 1900 ईस्वी के मध्य में आए थे।
नली हुसैनपुर का इतिहास 1900 ईस्वी से ही शुरू नहीं होता है। वास्तव में वर्तमान गाँव के पूर्व में गाँव से कुछ ही मीटर दूरी पर एक खेड़ा हुआ करता था जो कि मुगल काल में एक विकसित कस्बा रहा होगा। किन्ही अज्ञात कारणों से यह कस्बा उजड़ गया था। इस कस्बे का नाम हुसैनपुर होता था। बाद में त्यागी ब्राह्मण समुदाय के लोग वहाँ से थोड़ी दूर पश्चिम दिशा में आकर बस गए थे। इस कारण से नली हुसैनपुर को त्यागियों का खेड़ा भी माना जाता है। जहां पर हुसैनपुर का खेड़ा था उस जगह पर लगभग 1975 ईस्वी में सरकार ने एक सरकारी ट्यूबवेल लगवाया ताकि गाँव को पीने के पानी की पूर्ति की जा सके। इसी योजना के तहत पाइप लाइन बिछाने के लिए इसी खेड़ा के बीचों-बीच खुदाई कराई गई। खुदाई के दौरान इस जगह से पुरातत्व विभाग को काफी सारे चांदी के सिक्के, टूटे बर्तन व चूड़ियाँ मिली। इन सब प्राप्त अवशेष से यह निस्कर्ष निकलता है कि मुगल काल में इस जगह पर हुसैनपुर नाम का कोई विकसित कस्बा रहा होगा जो कि अज्ञात कारणों से विलुप्त हो गया था। इसी के नाम पर बाद में आबाद जगह को नली हुसैनपुर नाम दिया गया होगा।
कुचेसर आजादी से पहले दलाल गौत्र के जाट हिन्दू राजा की रियासत हुआ करती थी। इस रियासत में 360 गाँव आते थे। राजा ने आजादी से कुछ समय पूर्व पटियाला की राजकुमारी से शादी की थी जिससे तीन राजकुमार रणजीत सिंह, सरजीत सिंह और तेजपाल सिंह पैदा हुए। सरजीत ने सिख धर्म अपना लिया जबकि रणजीत हिन्दू धर्म का अनुयायी रहा। तेजपाल का वंश आगे नहीं चला। आज कल कुचेसर फोर्ट में इन दोनों भाइयों के वंसज रहते हैं।
नली हुसैनपुर के लुहाच पूर्वज नाँधा से निकले पहले और दूसरे जत्थे का हिस्सा थे। पहला जत्था में 30 वीं पीढ़ी के होराम लुहाच भंडोली जा कर बस गए थे। इन्ही होराम के 34 वीं पीढ़ी के वंशज साहब सिंह सपरिवार नली हुसैनपुर आकर बस गए थे। दूसरे जत्थे के 31 वीं पीढ़ी के मनसा राम का बेटा ज्ञाना राम खाद मोहन नगर जाकर बस गया था। ज्ञाना राम का पौता राम सिंह भी सपरिवार नली हुसैनपुर आकर बस गया था।
मनसा राम के दो बेटे भगवाना राम और नयन सिंहदूसरे जत्था का हिस्सा थे। दूसरा जत्था नाँधा से चलकर नली हुसैनपुर रुका था। नयन सिंह कुछ दिन नली हुसैनपुर रुकने के बाद सपरिवार पास के गाँव भड़ंगपुर चल गया जबकि भगवाना राम नली हुसैनपुर में ही बस गया। कालान्तर में नयन सिंह के दो पौते वापस नली हुसैनपुर आकर रहने लगे। इनमें से एक 34 वीं पीढ़ी के लक्ष्मण सुपुत्र भूप सिंह और इसी पीढ़ी के कल्लू सिंह सुपुत्र रामबक्स सिंह थे। आजकल इनके वंशज भी इसी गाँव में रहते हैं।
नाँधा से दूसरे जत्थे में 32 वीं पीढ़ी से बृजराज लुहाच के चार पुत्र बलराम, शादी राम, रामबक्स और कंडेरा भी नली हुसैनपुर आकर बस गए। इस परिवार के सब वंशज अब इसी गाँव में रहते हैं।
32 वीं पीढ़ी के भगवाना राम का परिवार भी नली हुसैनपुर में ही बस गया था। भगवाना राम के तीन पुत्र सज्जन सिंह, हरचैन सिंह और धूम सिंह थे। इनमें से सज्जन सिंह और हरचैन सिंह के वंशज आज भी नली हुसैनपुर में ही रहते हैं। धूम सिंह के पाँच पुत्र थे। इनके नाम गुलाब सिंह, शेर सिंह, मान सिंह, झँडू राम और बसाऊ थे। बसाऊ को छोड़ कर सब भाई गढ़ी गुलडहर चले गए। इनमें से शेर सिंह और झँडू सिंह अविवाहित थे।
बसाऊ का बेटा नारायण सिंह नली हुसैनपुर में ही रहा। नारायण सिंह ने अपने बेटे रामदास की शादी अमरपुर गाँव में कर दी। उसके सुसराल पक्ष में कोई लड़का न होने के कारण वह भी बाद में सपरिवार अमरपुर चला गया। इस प्रकार नली हुसैनपुर से तीन गाँवों गढ़ी गुलडहर, भड़ंगपुर और अमरपुर में विस्थापन हुआ जबकि इस गाँव में अलग अलग समय पर नाँधा, भंडोली, खाद मोहन नगर और भड़ंगपुर से लुहाच परिवार आकर बसे थे।
लुहाच पैदा हुआ। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। अगली पीढ़ी में दो बेटे उमरा राम और मनसा राम पैदा हुए। 32 वीं पीढ़ी में उमरा राम के चार बेटे और मनसा राम के तीन बेटे पैदा हुए। इस प्रकार बलराम के कुल सात पोते पैदा हुए जिनके नाम थे ठण्डू राम, राधा राम, साधु राम, नैन सिंह, ज्ञाना राम, भगवाना राम और केसा राम। गाँव की भोगोलिक स्थिति जीवनयापन के अनुकूल नहीं थी। इसी कारण से लगभग 25 साल पहले इसी गाँव से यमुना पार की तरफ तीन परिवारों का पलायन हो चुका था। उन परिवारों से पता चला कि यमुना पार पानी की कोई कमी नहीं है। जीवनयापन के हिसाब से यह इलाका काफी अनुकूल है। इसी कारण से ठण्डू राम और केसा राम को छोड़ कर बाकी सब भाई भी सपरिवार दिल्ली-हापुड़ होते हुए नली हुसैनपुर गाँव पहुँच गए। यह इलाका कुचेसर रियासत के तहत पड़ता था । कुचेसर एक जाट राजा की रियासत हुआ करती थी। इस इलाके में थोड़ी थोड़ी दूर बहुत कम आबादी के गाँव थे। लोगों की कमी थी। इसलिए लोग चाहते थे कि कोई हिन्दू भाई यहाँ आकर रहे। इस प्रकार सभी भाई इस नई जमीन पर आकर काफी संतुष्ट हुए।
क्योंकि कारवां काफी बड़ा था इसलिए सभी भाइयों के लिए एक ही गाँव में बसना उचित नहीं लगा। सभी भाइयों ने आस पास के गाँवों में एक एक परिवार जाकर रहने की योजना बनाई। इसी योजना के तहत भगवाना राम का परिवार नली हुसैनपुर में ही रुक गया। नैन सिंह का परिवार दो किलोमीटर दूर भड़ंगपुर चला गया। साधु राम का परिवार पाँच किलोमीटर दूर भैंसाखुर चला गया जब की राधा राम का परिवार भैंसाखुर से दो किलोमीटर दूर सेहरा में रुक गया। ज्ञाना राम के परिवार को कुछ ज्यादा दूर चलना पड़ा और खाद मोहन नगर पहुँच गया।
नली हुसैनपुर में लुहाच वंश के पूर्वजों ने हरियाणा के नानधा गाँव से चलकर लगभग 1800 ईस्वी में कदम रखा था। इस कारवां में पाँच चचेरे भाई सपरिवार आए थे। इनमें से चार भाई क्रमश भड़ंगपुर, भैसाखुर, सेहरा और खाद मोहन नगर जाकर बस गए, लेकिन भगवाना राम का परिवार नली हुसैनपुर में ही बस गया। इसके अलावा भड़ंगपुर की वंशावली के पेज संख्या 1 के मुताबिक पीढ़ी संख्या 2 में नैन सिंह के छः बेटे पैदा हुए। इसमें से दूसरे नम्बर के बेटे रामबक्श के तीन बेटे गंगा राम, जहांगीर सिंह और कल्लू राम थे। गंगा राम अविवाहित था। जहांगीर सिंह भड़ंगपुर में ही बस गया जबकि कल्लू राम सपरिवार वापिस नली हुसैनपुर आ गया। इस प्रकार अब नली में भगवाना राम के वंशज के अलावा नैन सिंह के पोते कल्लू राम के वंशज भी रहने लगे। इन दो परिवारों के अतिरिक्त एक तीसरा लुहाच परिवार खाद मोहन नगर से आकर बस गया।
खाद मोहन नगर की वंशावली के पेज संख्या 1 के मुताबिक ज्ञान सिंह का बेटा राम सिंह लगभग 1825 ईस्वी में नली आकर बस गया। इस प्रकार आज नली हुसैनपुर में भगवाना राम, उसके चचेरे भाई नैन सिंह के पोते कल्लू राम और सगेभाई ज्ञाना राम के बेटे राम सिंह के वंशज रह रहे है।
कालांतर में नली हुसैनपुर से हापुड़ के भड़ंगपुर, गाजियाबाद के गढ़ीगुलडहर और मेरठ के अमरपुर में लुहाच गौत्र के लोगों का विस्थापन हुआ।क्योंकि नैन सिंह, भगवाना राम का चचेरा भाई था और नाली हुसैनपुर में कुछ दिन ही रुककर भड़ंगपुर चल गया था इस लिए उसका नाम नली हुसैनपुर की वंशावली में नहीं है। इसी कारण से नली हुसैनपुर की वंशावली से भड़ंगपुर की निकासी नहीं दिखाई गई है। गढ़ी गुलडहर की निकासी के लिए नली हुसैनपुर की वंशावली के पेज संख्या 3 पर पीढ़ी संख्या 1 में शादी राम लुहाच के तीन बेटे तोता राम, भगवान सहाय और सुरजमल पैदा हुए। भगवान सहाय और सुरजमल का परिवार नली हुसैन में ही रह गया जबकि तोता राम का बेटा मान सिंह लगभग 1875 ईस्वी मेंगाजियाबाद के पास गढ़ी गुलडहर जा कर बस गया। इसी प्रकार नल हुसैनपुर सेदो परिवार अलग अलग समय पर मेरठ जिले के अमरपुर गाँव में जाकर बस गए। नली हुसैनपुर की वंशावली पेज संख्या 4 से पीढ़ी संख्या 3 पर होशियार सिंह का बेटा रामजी लाल लगभग 1900 ईस्वी में और इसी पेज पर पीढ़ी संख्या 4 के प्रह्लाद का बेटा राम दास लुहाच भी लगभग 1925 ईस्वी में सपरिवार अमरपुर में जाकर बस गए थे।